Thursday, November 26, 2009

विधि दिवस पर विशेष

हमारी न्याय प्रणाली व वर्तमान

में त्वरित न्याय की आवश्यकता
वर्तमान समय में ज्यों-ज्यों शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ हैं, त्यों-त्यों हमारे समाज में राजनैतिक एवं सामाजिक चेतना के साथ-साथ विधिक चेतना का भी विकास हुआ हैं। आज मानव जीवन का प्रत्येक पहलू विधि एवं काननू से संबंध रखने लगा हैं, वर्तमान समय में नागरिक अपने राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं शैक्षिक आदि अधिकारों का उपयोग व उपभोग मुख्यतः करना चाहता हैं। हमारी विधि भी इन अधिकारों को उपचार प्रदान करती हैं, लेकिन उपचार हमें समय पर मिलना बडी कठिन व दुर्लभ हो गया हैं, विलम्ब से प्राप्त हुआ न्याय न्याय नहीं अन्याय हैं। यदि न्याय उचित समय पर नहीं मिलता हैं तो उस न्याय व काननू का कोई औचित्य नहीं रह जाता हैं एवं ऐसे कानून व न्याय से व्यक्ति व्यथित एवम् कुंठित हो जाता हैं और न्याय और कानून से विमुख लोने लगा हैं। प्रत्येक देश की न्याय व्यवस्था अपने देश के विकास व प्रगति को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से आवश्यक प्रभावित करती हैं।
आज हमारे देश में आवश्यकता हैं विधि एवं न्याय प्रक्रिया में संशोधन कर न्यायिक प्रक्रिया को सरल, सुबोध एवं कम खर्चीली बनाने की, जिससे उचित समय पर पीडित व्यक्ति को सस्ता, स्वतंत्र एण्वं निष्पक्ष न्याय उपलब्ध हो सके, जिससे पीडित व्यक्ति का न्याय एवं कानून के प्रति निष्ठा एवं विश्वास बना रहे एवं अपराधों पर भी नियंत्रण बनाया जा सके।
हमारे देश के न्यायालयों में लम्बे समय तक मामले न्याय निर्णय के लिए लम्बित पडे रहते हैं, जिससे कुछ मामले में तो गवाह तक बदल जाते हैं, या ग्वाह अन्यत्र चले जाते हैं, जिससे मामलों के निष्पक्ष न्याय निर्णय करने में न्यायालय को कठिनाई का सामना करना पडता हैं, कुछ मामलों में तो ग्वाह का स्वर्गवास हो जाता हैं, या कुछ मामलों में तो न्याय निर्णय प्राप्त करने वाला जिस चाह से न्यायालय में मुकदमा दायर करता हैं। निर्णय सुनने से पहले ही स्वर्ग सिधार जाता हैं। जिससे न्याय निर्णय होने तक न्यायालय में दायर मुकदमें का मकसद ही समाप्त हो जाता हैं, जिससे अपराधियों मे कानून का भय कम हो जाता हैं।
कई कारणों के द्वारा न्यायालय को न्याय निर्णय करने में देरी व विलम्ब का सामना करना पडता हैं, जिसम- न्यायालयों में न्यायिक अधिकारिय व कर्मचारियों की कमी व रिक्त पद, न्यायालयों पर मुकदमों का बोझ अधिक होना, न्यायालयों की कमी, न्यायालयों में बिना कारण के याचिकायें एवं मुकदमें दायर हो जाना, पुलिस प्रशासन द्वारा मामलों की जांच व रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत करने में अधिक समय लग जाना, अपर न्यायालयों द्वारा अधिनस्थ न्यायालयों में मामलों को न्याय निर्णय हेतु प्रति पषित किया जाना, अधिवक्तागणों द्वारा न्यायालय के न्यायिक कार्यों में सक्रिय भाग न लेना, हडतालें, मामलों में लम्बी चौडी मौखिक बहस, बिना वजह स्थगन प्राप्त कर लेना, न्यायालयों में अन्य विभागों से संबंधित मामलों के विचारण में विभागीय अधिकारियों का अन्य कार्यों में व्यस्त होने के कारण न्यायालय कार्यवाही में अपना पक्ष रखने में देरी होती हैं एवं राजस्व न्यायालयों में तो न्यायिक अधिकारीगण, प्रशासनिक कार्यों व सरकारी कार्यों में ज्यादा व्यस्त होने के कारण मामलों की सुनवाई में विलम्ब होता हैं एवं न्याय निर्णय में बहुत अधिक समय लगता हैं और न्याय प्रणाली प्रभावित होती हैं।
वर्तमान समय में हमारी न्याय प्रणाली में व्यापक सुधार की आवश्यकता हैं। सर्वप्रथम तो न्यायाधिशों एवं न्यायिक कर्मचारियों के रिक्त पदों को भरने व नये पद सृजित करने से हैं, जिससे न्यायालयों का कार्य सुचारू रूप से चल सकें। यदि अदालतों को दो पारियों में कार्य करने या अतिरिक्त समय में कार्य करने जैसे प्रावधान किये जाये, जिससे सरकार पर आर्थिक बोझ भी कम पडेगा व कार्य भी सुचारू रूप से कम समय में पूर्ण हो सकेगा। न्यायिक प्रक्रिया में न्यायालयों की सहायता के लिए कुछ प्राधिकरणों, आयोगों, मंचों, स्वयं सेवी संगठनों, एजेंसियों आदि का सहयोग लिया जा सकता ह। मुकदमों की सुनवाई की समय सीमा निश्चित की जावे।
अधिनस्थ न्यायालयों के फैसले के पश्चात् अपीलय न्यायालय द्वारा अपील प्रवेश व पंजीकरण पर मामले के तथ्यों एवं न्याय निर्णय के आधारों पर विवेचना कर ही पंजीकृत की जावे। मामलों की जांच की समय अविध निश्चित की जावे। सामान्य मामलों में संक्षिप्त सुनवाई कर न्याय निर्णय किया जाये। झूठा एवं मकसदहीन मुकदमें न्यायालय से दायर करने वालों के प्रति न्यायालय द्वारा कडी कार्रवाई की जाये।
न्यायपालिका की अहम कडी अधिवक्तागण, पुलिस, प्रशासनव मुवक्लि आदि हैं, जिनको न्यायालय की कार्यवाहिय में लग्न, निष्ठा एवं संवेदनशील रखते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए। अधिवक्तागण, पुलिस एवं प्रशासन आदि को प्राधिकरण एवं जांच आयोग एवं एजेंसियों में पदस्थापित कर मामले की जांच निष्पक्ष एवं स्वतंत्र रूप से कम से कम समय में न्यायालय में प्रस्तुत कर न्यायालय द्वारा कम समय में निर्णय दिया जा सकता हैं। राजस्व न्यायालयों में विधिवेता एवं न्याययिक अधिकारी नियुक्त कर राजस्व मामलों का निपटारा किया जाये।
वर्तमान समय में सरकार द्वारा चलाये जा रहे ग्रामीण न्यायालय एवं मोबाईल कोर्ट भी कम से कम समय में नागरिकों को न्याय प्रदान कर सकते हैं। इसके साथ-साथ न्यायालयों में समझौते, प्रकोष्ठ एवं परामर्श केन्द्रों की स्थापना कर विवादों को सुलह, समझौते एवं राजीनामे के आधार पर शीघ्र निपटारा किया जा सकता हैं एवं समय-समय पर लोक अदालतों का आयोजन भी त्वरित न्याय में अहम भूमिका अदा कर सकती हैं। राज्यों के उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय की अधिक से अधिक खण्ड पीठ स्थापित कर शीघ्र एवं सस्ता न्याय सुलभ करवाया जा सकता हैं।
- एडवोकेट रामानन्द शर्मा, हनुमानगढ

Dainik Ibadat 27 April 2024