Monday, September 27, 2010

नशे की बुराई से जुझती श्रीगंगानगर पुलिस



श्रीगंगानगर। कहते हैं कि जहाँ धन, सम्पदा एकत्रित होती है तो वह कुछ बुराईयां भी अपने साथ लाती है। कुछ ऐसा ही हुआ है राजस्थान के सबसे अधिक राजस्व आय वाले कृषि प्रधान जिले गंगा नगर में। गत वर्षों में ज्यों-ज्यों इस जिले ने शिक्षा के विस्तार के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक क्षेत्र में तरक्की की रफतार पकडी त्यों-त्यों जिले के सभी आयु वर्ग के लोगों में नशीले पदार्थों यथा गांजा, चरस, पोस्त, शराब, गुटखा, जर्दा, व नशीली दवाईयों जैसे गोलियां कैप्सूल और कफ सिरप व यहाँ तक कि व्हाईट फल्यूइड का इस्तेमाल नशे के विकल्प के रूप बढता गया है। हालात यह है कि आज हजारों घरों के लाखों युवक, युवतिया व स्कूलों में पढने वाले विधार्थियों के चोरी छिपे नशे के आदी होने के कारण परिवारों में अनेक प्रकार की समस्याएं व विवाद बढते जा रहे हैं। नशे की इस बढती प्रवृति से युवाओं में उच्छखंलता व उन्माद बढा है। नशे की प्रवृति के चलते अनेक युवा अपना बेशकीमती जीवन गंवा चुके हैं व हजारों परिवार बर्बादी की राह पर है। अनेक घरों में जहाँ बुढे माँ-बाप का एक ही नौजवान सहारा है वह भी नशे की लत के चलते जीवन को तबाह करने से नहीं चूक रहा है। जिले के युवाओं की हालत ऐसी खराब हो चली है कि वे किसी की सुनने को ही तैयार नहीं है।

क्यों करते हैं नशा

        इस क्षेत्र में नशाखोरी के शिकार लोगों में एक आम धारणा व्याप्त है कि इससे उनकी कार्यक्षमता में वृद्वि होती है व नशा करने के बाद वे तनाव मुक्त महसूस करते है इसके अलावा अधिकांश नशाखोर लोगों का मानना है कि इससे उन्ह एक अलग तरह के आनंद की प्राप्ति होती है।इसके अलावा इस जिले के लोगों के सामाजिक, आर्थिक रिश्ते पंजाब के लोगों की जीवन शैली से भी प्रभावित है। पंजाब में शराब, पोस्त आदि को बुरी लत नहीं माना जाता व इन चीजों का सेवन वहाँ अधिकांश लोग अपने बच्चों व बडों के सामने करते हैं। बच्चे कतुहलवश व अज्ञानतावश भी नशे की आदतों के शिकार हो जाते हैं। इस परिवेश का फैलाव इस जिले में भी हो गया है रही सही कसर जिले में छायी पॉप संस्कृति ने पूरी कर दी है आम तौर पर जिले में होने वाली शादिय, समारोहों व अन्य पार्टियों में शराब व अन्य नशे की चीजो का खुल कर इस्तेमाल होता है।

                 जिले की सीमा पाकिस्तान से लगी होने के कारण भी मादक पदार्थों के अवैध कारोबारी तस्करी कर इन चीजों की आपूर्ति अपने गुर्गों के माध्यम से करते हैं। इसके अलावा बच्चों व युवाओं में शराबखोरी व अन्य नशे की चीजों के सेवन के पीछे कारण उनके माँ-बाप या अन्य परिजन भी हैं क्योंकि जब इस आयु वर्ग के लोग अपने परिजनों, सगे-सम्बधियों को नशे की चीजों का सेवन करत हुए देखते हैं तो धीरे-धीरे वे भी इन चीजों के सेवन के शौकीन हो जाते हैं। जब वे नशे के आदी हो जाते हैं तो वे अनुचित योन व्यवहारों में भी श्शरीक होने लगते है। नीम-हकीम भी इन नशे के आदियों व युवाओं को पौरूष बढाने के नाम पर नशे की चीजें परोसते हैं। नशे की प्रवुति के शिकार लोगों में 4॰ पतिशत से अधिक लोग 16 वर्ष से उपर की आयु के हैं। सुत्र बताते हैं कि इस आयु के लोग जिले के विभिन्न साईबर कैफे व अन्य सुत्रों से अश्लील फिल्में देखते हैं व उन्मुक्त यौन व्यवहार को बढावा देने वाला साहित्य पढते हैं। इन सब से जागृत कुंठाओं की पूर्ति के लिए भी युवा पीढी नशे का शिकार हो रही है।

जिले की भौगोलिक परिस्थितियां

                 श्रीगंगानगर जिले की भौगोलिक परिस्थिति कुछ ऐसी है कि यह नशीली वस्तुओं के अवैध कारोबारियों, तस्करों के लिए एक महफूज जगह बन गया है। जिले की एक सीमा पाकिस्तान से लगती है तो दूसरी सीमा पजांब से लगती है। इस कारण इस जिले में पाकिस्तान व पंजाब के रास्ते से होकर अनेक प्रकार के मादक पदार्थ युवाओं के हाथ में बेरोक-टोक पहच रहे हैं।

जिला पुलिस के सराहनीय कदम

               परन्तु जिला पुलिस ने भी नशे की इस बुराई से जुझने व युवक-युवतियों को नशे की लत से छुटकारा दिला कर फिर से हँसता-खेलता सामान्य जीवन जीने की राह दिखाने के लिए सन् 1992 से कमर कस रखी है। जिला पुलिस ने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से एक विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ॰ रविकान्त गोयल की सेवाएं लेकर एक नशा मुक्ति केन्द्र चला रखा है। डॉ॰ रविकान्त गोयल ने तो मानों इन नशा मुक्ति शिविरों को जीवन का एक अभिन्न अंग ही बना लिया है। जिले के नागरिकों के दर्द को उन्होंने अपने सीने से लगा रखा है व वे हमेशा ऐसे शिविरों की रूपरेखा में ही व्यस्त रहते हैं। इस केन्द्र के अधीन जिला पुलिस के सभी छोटे-बडे अधिकारियों ने एकदम सकारात्मक भाव के साथ समर्पित होकर अभी तक 1॰ दिवसीय 38 आवासीय कैम्प लगाये हैं जो कि एक मिसाल है।

                    इन आवासीय नशामुक्ति शिविरों का आयोजन पुलिस अधिकारी व कर्मचारी व अन्य विभागों के अधिकारी जन सहयोग से करते हैं। नशे के आदी लोगों को 1॰ दिन तक केन्द्र में उपाचाराधीन रखा जाता है। इस शिविर में आने वालों के आवास व भोजन की व्यवस्था केन्द्र द्वारा जन सहयोग से की जाती है ं। अभी तक 4॰, ॰॰॰ से अधिक युवक, युवतियां व अन्य आयु वर्ग के लोग इन शिविरों से लाभ उठा चुके हैं। जिले में जो भी पुलिस अधीक्षक आये, सभी ने इस जिले को नशामुक्त बनाने के लिए दिल से प्रयास किये व हजारों लोगों की जिन्दगी व उनके परिजनों को फिर से आशा की किरण दिखाई है।

                         चाहे वे सुधीर प्रताप सिंह, लक्ष्मण मीणा, के.नरसिंहराव, वी.के. गोदिका, आलोक त्रिपाठी, रवि प्रकाश मेहरडा, आर.पी. सिंह, चुन्नी लाल, यू.आर साहू, सुनील दत्त, सौरभ वास्तव, विनिता ठाकुर, आलोक वशिष्ठ, उमेश चन्द्र दत्ता या वर्तमान में पुलिस अधीक्षक के पद पर पदस्थापित रूपिन्द्र सिंह हों सभी ने नशे जैसी बुराई से लडने में कोई कसर नहीं छोडी। जिला पुलिस के इस अभिनव प्रयत्न में क्षेत्र के सभी वर्गों की जन सहभागीदारी भी प्रशंसनीय है। पुलिस अधिकारियों व जनता की भागीदारी से श्मात्र शिविरों से श्शुरू हुआ यह अभियान एक बडा रूप ले चुका है। 1996 में जब के. नरसिंहराव जिले के पुलिस अधीक्षक थे, तब उनके प्रयासों से स्थायी नशा मुक्ति केन्द्र की स्थापना की गई।

               यधपि जिला पुलिस ने समय-समय पर अनेक बार सघन अभियान चला कर नशाीली दवाएं व अन्य मादक पदार्थ इनके अवैध कारोबारियों से बरामद किये हैं लेकिन नशा करने वालों व मादक पदार्थों की आपूर्ति करने वालों के बीच सीधा गठजोड पुलिस के लिए सिर दर्द बना हुआ है।



नशाखोरी की मूल जडों पर भी पुलिस का प्रहार

विद्यार्थियों में नशे के विरूद्व जागरूकता हेतु शिविर

नशे की आदतों के शिकार हो चुके लोगों को नशा मुक्ति की ओर अग्रसर करना ही जिला पुलिस ने पर्याप्त नहीं समझा। जब पुलिस अधिकारियों ने देखा कि उच्च प्राथमिक व माध्यमिक कक्षाओं के विधार्थी भी नशे की लत के शिकार होते जा रहे ह तो पुलिस ने गत दिनों तत्कालीन पुलिस अधीक्षक आलोक वशिष्ठ, उमेश चन्द्र दत्ता व वर्तमान पुलिस अधीक्षक रूपिन्दर सिंह के मार्गदर्शन में इस केन्द्र ने विधार्थियों को नशे की प्रवृति से बचाने के लिए अवेयरनेस कैम्प लगाने श्शुरू किये। इन शिविरों में छोटे-कस्ब, गांवों, ढाणियों व शहरों में मोहल्लों में विधार्थिया, उनके परिजनों व नागरिकों व ग्रामीणों को ईकठा कर उन्हें नशा क्या है, इसके नुकसान क्या है व इससे बचाव के क्या उपाय है, व नशे के बारे में उनमें व्याप्त गलत फहमियों आदि के बारे में जागरूक बनाया जाता है। साथ ही इन सब को आजीवन नशे की लत से बचे रहने की शपथ बहुत ही सकारात्मक मार्गदर्शन के साथ दिलवायी जाती है। गत ढाई वर्ष से चल रहे इस अभिनव प्रयोग के भी अनेक सार्थक प्रभाव सामने आये हैं व जनता की सहभागिता बढी है। इस अभियान में शिक्षा विभाग के सहयोग से अभी तक एक लाख बच्चों को नशा मुक्ति के विरूद्व जागरूक किया जा चुका है। नशा मुक्ति शिविरों हेतु श्शुरू से ही अपनी सर्मपित सेवाएं देने वाले व नशा मुक्ति केन्द्र के प्रभारी डॉ. रविकान्त गोयल दिन-रात मेहनत कर जिला पुलिस के इस अभिनव अभियान को अनवरत् जारी रखे हुए हैं।



मोती लाल वर्मा

(प्रचार) पुलिस मुख्यालय, जयपुर।

Dainik Ibadat 27 April 2024