Wednesday, February 17, 2010

लाशों की नहर


नहरों में प्रतिदिन आने वाले शवों के मामले में की खास पडताल। किस तरह पंजाब व हरियाणा में हत्या कर शवों को ठिकाने लगाया जाता है और फिर वही शव राजस्थान की किसी नहर में सडी गली अवस्था में बरामद होता है जिसकी न तो पहचान हो पाती है और न ही उसको कफन ही नसीब हो पाता है। ऐसे अभागों के परिजन भी पूरी उम्र उनका इंतजार करते हैं और उनका परिजन किसी नहर के किनारे लावारित समझकर दफना दिया जाता है।

          







                                                               हनुमानगढ। मेंडिकल साईंस में इंसान की मौत के कई कारण बताये जाते हैं और इनमें से कई कारण साधारण और कई हत्या के माने जाते हैं। ऐसे में असाधारण मौत पर पुलिस की पुरी तफ्तीश होती है और इसके लिए दोषी को सलाखों के पीछे भेजा जाता है। हत्या के मामलों में मृतक के परिजन भी दोषियों को सलाखों के पीछे भेजने के लिए लम्बी कानूनी लडाई लडते हैं और अगर ऐसे में मृतक के परिजनों को पता ही नहीं चले कि उनका लापता परिजन मौत की नींद सो चुका है और किसी दूसरे राज्य के किसी शहर में उसका अंतिम संस्कार भी लावारिस की तरह हो चुका है तो इस मामले में किया भी क्या जा सकता है? राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ जिलों में नहरों से प्रतिदिन निकलने वाले शवों के मामले में भी ऐसा ही होता है। ऐसा नहीं है कि घर से लावारिस अधिकतर लोग साधारण मौत मर जाते हैं या फिर नहर में छलांग लगाकर आत्महत्या कर लेते हैं बल्कि ऐसे मामलों में अधिकतर घटनाएं हत्या से सम्बन्ध होती हैं।



                पंजाब और हरियाणा से आने वाली इन नहरों में आने वाले शव हमेशा से ही संदिग्ध रहे हैं और इन शवों की संख्या भी इतनी ज्यादा है जो कि इन शवों को स्वतः ही संदिग्ध प्रकट करती है। दरअसल ये नहरें अन्नदाता किसानों को सिंचाई पानी देने के साथ-साथ ‘हत्या करो और सबूत मिटाओ’ के भी काम आ रही हैं। जब नहरों से निकलनी वाले शवों के आंकडे एकत्रित किये तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। पूरे मामले की गहराई में जाने पर चला कि पंजाब व हरियाणा में हत्या के बाद इन शवों को नहरों मे डाल दिया जाता है और इसके बाद ये शव बहते हुए राजस्थान में प्रवेश कर जाते हैं जहां शव की जानकारी मिलने पर भी नहर महकमे से सम्बन्धित कर्मचारी इन शवों को निकालने या फिर इस बाबत पुलिस को जानकारी देने में कतराते हैं और इस तरह यह शव नहर के अंतिम छोर टेल तक पहुंच जाता है जहां आगे कोई रास्ता न होने और पानी की कमी हो जाने के कारण शव टेल में फंस जाता है ऐसे में टेल का कोई किसान इन शवों के बारे में पुलिस को जानकारी देता है और फिर पुलिस द्वारा 174 सीआरपीसी में मर्ग दर्ज कर इन शवों का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। चूंकि यह शव कई दिन पुराने हो चुके होते हैं ऐसे में न तो इनका ढंग से पोस्टमार्टम हो पाता है और न ही इनकी सही ढंग से पहचान हो पाती है। दूसरी तरफ पुलिस भी नित आने वाले शवों के मामले में इस स्तर तक उदासीन हो चुकी है कि वह आगे मामले की तफ्तीश करने की बजाय मर्ग दर्ज कर मामले को फाईलों के हवाले कर देती है। ऐसे में हत्या कर शव नहर में डालने के ऐसे मामलों में न तो आरोपी की पहचान हो पाती है और न ही परिजनों को पता चल पाता है कि उनका अपना इस दुनिया को छोड चुका है। ऐसा भी नहीं है कि पुलिस के आला अधिकारियों ने इस मामले में कभी गहराई से न सोचा हो बल्कि पुलिस के बडे-बडे अधिकारियों की अंतर्राज्यीय बैठकों में यह मामला उठता रहा है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के पुलिस अधिकारियों ने आपसी बैठक में इस मामले को कई बार उठाया है और इस बाबत राज्यों की सीमा पर संयुक्त पुलिस चौकी स्थापित करने की बात भी उठती रही है पर इस विचार को हकीकत में नहीं बदला जा सका।



                   पुलिस अधिकारियों का मानना है कि अगर पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की सीमा पर संयुक्त पुलिस चौकी स्थापित कर दी जायी जो समस्या का कुछ हद तक निवारण हो सकता है क्योंकि नहर में बहकर आया शव राज्य की सीमा पर पहुंचते समय इतना पुराना नहीं होती और उसकी आसानी से तफ्तीश हो सकती है पर अफसोस की पुलिस की यह सोच अमलीजामा नहीं पहन सकी और पुलिस के हाथ शव तब लगता है जब वह नहर के अंतिम छोर तक पहुंच चुका होता है और तब तक शव में कुछ भी नहीं बचता। बस मौके पर ही पोस्टमार्टम करवाकर शव को नहर किनारे ही दफना दिया जाता है और मरने वाले को कफन भी नसीब नहीं होता और न ही उसके अपनों को उसकी लाश पर रोने का ही वक्त मिलता है। नहरों में बहकर आने वाले शव के मामले में शव की इतनी दुर्दशा के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार सिंचाई महकमा है जो पता चलने पर भी शव की ओर से आंखें मूंद लेता है।
                   हनुमानगढ जिले का मसीतांवाली हैड हो या फिर कोई और नहर, अक्सर ऐसे दृश्य देखने को मिलते हैं जब सिंचाई विभाग के कर्मचारियों के सामने शव नहर से निकलता है और विभागीय कर्मचारी आंखें मूंदे रहते हैं और फिर यही शव कई दिनों बाद किसी नहर की टेल से बरामद होता है। ऐसे में जब विभागीय कर्मचारियों को शव के बारे में पहले ही मालूम हो चुका है बावजूद इसके शव को आगे जाने दिया जाता है और यही कारण होता है कि शव इतनी बुरी तरह गल चुका होता है कि उसकी कोई पहचान नहीं होती। ऐसा नहीं है कि सभी शवों को हत्या के बाद डाला जाता है परन्तु अधिकतर मामलों में यह हत्या कर ही डाला जाता है और पंजाब से राजस्थान के टेल तक पहुंचने में एक शव को औसतन 1॰॰ से 13॰ घण्टे लगते हैं ऐसे में सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि इतने समय में शव की क्या हालत होती है।
                      नहरों में प्रतिदिन आने वाले शवों के बारे में पुलिस अधिकारी भी मानते हैं कि यह एक गंभीर समस्या है और इसका निवारण होना चाहिए पर कार्ययोजना बनाने में आज तक न राजस्थान की सरकार ने पहल की और न ही पंजाब व हरियाणा की सरकार ने। इस मुद्दे पर बीकानेर संभाग के पुलिस महानिरीक्षक मेघचंद मीणा कहते हैं ‘यह एक अंतर्राज्यीय मसला है और इसके लिए प्रयास भी किये जा रहे हैं, पुलिस पुरी प्रक्रिया अपनाकर शिनाख्त के प्रयास करती है फिर भी अपराधी किस्म के लोग अपने बचाव के लिए ऐसा कर रहे हैं और हनुमानगढ व श्रीगंगानगर जिलों में अधिक संख्या में मर्ग दर्ज होने के पीछे ये शव ही बडा कारण हैं।’ दूसरी तरफ इसी मामले पर सिंचाई विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ‘नहर में शव आना एक विकट समस्या बन चुका है, इससे पानी भी प्रदूषित होता है। इसके लिए नहरों में प्रवेश स्थल पर जाल लगाया जाये तो केली से नहर टूट जायेगी और अगर जाल नहीं लगाया जाये तो ये शव आते ही रहेंगे। इस सम्बन्ध में अगर सरकारी प्रयास हों तो ही समस्या का कुछ समाधान निकला सकता है।’ अब चूंकि इस मामले में गेंद एक पाले से दूसरे पाले में घूम रही है और इसी कारण इस समस्या का कोई ठोस समाधान भी नहीं निकल रहा। पुलिस जहां इस मामले को सरकार पर छोडती है वहीं सिंचाई विभाग कुछ भी करने में असमर्थता जाहिर कर रहा है और अगर सरकार की बात की जाये तो आज तक किसी भी सरकार ने इस ओर सोचा भी नहीं।
                          इस मामले में एक उल्लेखनीय पहलू यह भी है कि जिस पुलिस पर शव के अंतिम संस्कार का दायित्व सौंपा जाता है उसको विभाग की तरफ से अंतिम संस्कार के लिए एक भी रूपया उपलब्ध नहीं करवाया जाता ऐसे में शुरू-शुरू में पुलिस ग्रामीणों के सहयोग से अंतिम संस्कार करवा देती थी पर जब शवों की संख्या ज्यादा होने लगी तो इस मामले में ग्रामीणों ने भी हाथ खींच लिये और पुलिस ने भी ग्रामीणों के आगे हाथ फैलाने बंद कर दिये जिससे लावारिस लाश को कफन नसीब होना भी बंद हो गया। नहरों से शव निकलने के बाद पुलिस द्वारा पडौसी राज्यों के थानों को सूचना भी दी जाती है और कुछ लोग शव को पहचानने के लिए आते भी हैं पर शव की बुरी हालत फिर समस्या पैदा करती है और शव की पहचान नहीं हो पाती। कई बार संयोग से कपडों से शव की पहचान भी कर ली जाती है और ऐसे में कुछ लावारिस लाशों को कफन भी नसीब हो जाता है। इन शवों के मामलों में जानकारों का कहना है कि इनमें से अधिकतर शव हत्या कर नहर में फेंक दिये जाते हैं और शेष या तो नहर में गिरने से मारे जाते हैं या फिर आत्महत्या करने वालों के शव यहां तक पहुंच जाते हैं। इस मामले में खास पहलू यह भी है कि पूर्व में पंजाब के फिरोजपुर से पाकिस्तान जाने वाली नहरों में हत्या कर शव डाले जाते थे जो देश की सीमा पार कर पाकिस्तान चले जाते थे जहां इन शवों का मुद्दा ही खत्म हो जाता था और इस तरह की बढती घटनाओं के मद्देनजर पंजाब सरकार द्वारा पाकिस्तान सीमा पर जाल लगाये गये थे जिसके बाद से वहां पर शवों की संख्या घट गई और तभी से राजस्थान में आने वाले शवों की संख्या भी बढ गई इनमें भी ज्यादा संख्या हनुमानगढ की बजाय श्रीगंगानगर जिले में आने वाले शवों की संख्या है। ऐसे में सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि कभी पाकिस्तान जाने वाले शव किस तरह राजस्थान में प्रवेश कर रहे हैं।
                 मतलब यह कि राजस्थान में आने वाले शव यकायक नहीं बढे बल्कि वर्षों से पंजाब में हत्या कर शव नहरों में डाले जा रहे हैं और पूर्व में इनका निशाना पाकिस्तान जाने वाली नहरें थे जहां अब जाल लगाने के बाद राजस्थान आने वाली नहरें शव ठिकाने लगाने का साधन बनी हुई हैं। फिलहाल हत्या कर शव ठिकाने लगाने का यह गौरखधंधा परवान है और पुलिस व प्रशासन चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही और सरकारें हैं कि इस तरफ आंखें मूंदे हुए हैं ऐसे में यह खेल अनवरत जारी है और हत्या के शिकार कई अभागों का दर्द जहां पुलिस की फाईलों में दफन है वहीं उनके परिजन आज भी उनके इंतजार में आस लगाये बैठे हैं और शायद सरकारी उदासीनता से यह खेल आगे भी जारी रहे।

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Dainik Ibadat 14 May 2024